राजपूताना रेजिडेंस :-1832
इसकी स्थापना भारत के गवर्नर लॉर्डड विलियम बैंटिक द्वारा की गई
प्रमुख पद :-AGG-agent to governor general
प्रथम AGG- Mr locket (मिस्टर लॉकेट )
-1857 की क्रांति के समय AGG:- जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस
मुख्यालय:- शीतकालीन मुख्यालय अजमेर -1832
-ग्रीष्मकालीन मुख्यालय माउंट आबू 1845
-राजपूताना रेजिडेंसी का मुख्य उद्देश्य राजपूताना पर नियंत्रण स्थापित करना था
-1857 की क्रांति के समय राजस्थान में 6 सैनिक छावनिया थी
1. नसीराबाद (अजमेर ):-15 बंगाल नेटिव इन्फैंट्री
30वी मुंबई लॉयर्स
2. ब्यावर (अजमेर):- मेरो /मेवों की टुकड़ी
3. खेरवाड़ा ( उदयपुर):- भीलों की टुकड़ी
4. देवली( टोंक) :- कोटा लिजियम
5. एरिनपुरा( पाली) :-जोधपुर लिजियम
6. नीमच ( MP):-कोटा लिजियम
शेखावाटी ब्रिगेड:- 1834
मुख्यालय -झुंझुनू
- शेखावाटी ब्रिगेड एक सैनिक टुकड़ी थी इसकी स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी
-शेखावाटी क्षेत्र में हो रहे आंदोलनों को कुचलने के लिए इसकी स्थापना की गई
जोधपुर लिजियम:- 1835
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा स्थापित की गई सैनिक टुकड़ी
जोधपुर डीजीएम को एरिनपुरा छावनी में रखा गया
इस सैनिक टुकड़ी के सैनिकों को पुर्बिया सैनिक भी कहा जाता था
इस छावनी में मारवाड़ के सैनिक थे
1857 की क्रांति के समय प्रमुख पोलिटिकल एजेंट (PA)
राज्य | PA | प्रमुख शासक |
मेवाड़ | मेजर शॉवर्स | महाराणा स्वरूप सिंह |
मारवाड़ | मैक मॉसन | महाराजा तख्त सिंह |
जयपुर
| कर्नल ईडन | सवाई रामसिंह lI |
कोटा | मिस्टर बर्टन | महाराजा रामसिंह lI |
सिरोही | जे डी हॉल | केंद्र शासित प्रदेश |
अजमेर | कर्नल डिक्सन | केंद्र शासित प्रदेश |
भरतपुर | मॉरीशस | महाराजा बृजेंद्र सिंह |
प्रतापगढ़ | कर्नल रॉक | - |
देश में 1857 की क्रांति का तात्कालिक कारण:-
चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग
- भारतीय सैनिकों को ब्राउन बेस नामक बंदूक के स्थान पर एनफील्ड राइफल नामक बंदूक दे दी जिसमें गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस का प्रयोग किया जाता था
बैरकपुर छावनी:-
पश्चिम बंगाल
- चर्बी वाले कारतूसो की प्रथम घटना
- मंगल पांडे ने ह्यूसन को गोली मार दी
मेरठ छावनी (UP):-
10 मई 1857 को
- 1857 की क्रांति का प्रथम विद्रोह
Note:-1857 की क्रांति में राजस्थान दो सैनिक छावनी में विद्रोह नहीं हुआ 1.ब्यावर छावनी, 2. खेरवाड़ा छावनी
- इन में निवास कर रहे सैनिकों को चर्बी वाले कारतूस में कोई समस्या नहीं थी
नसीराबाद छावनी का विद्रोह :-28 मई 1857
- 1857 की क्रांति का राजस्थान में प्रथम विद्रोह
- 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री नमक सैनिक टुकड़ी को अंग्रेजों ने बंगाल से बुलाकर अजमेर के तारागढ़ दुर्ग की तलहटी में शिविर लगाकर प्रशिक्षण दिया
- क्रांति आरंभ होने के बाद इन सैनिकों को नसीराबाद छावनी में भेज दिया गया वहां पर 30 वीं मुंबई लोअर सैनिक टुकड़ी की निगरानी में रखा गया
- सैनिकों ने विश्वास खो कर विद्रोह कर दिया 28 मई 1857 को
- क्रांतिकारियों ने न्यूबरी व स्पोर्ट्स वुड को मौत के घाट उतार दिया तथा प्रीचार्ट नामक अंग्रेज अधिकारी भागकर अजमेर चला गया
- क्रांतिकारियों ने छावनी को लूटा और अजमेर की बजाय क्रांतिकारी दिल्ली चले गए
- क्रांतिकारियों का पिछा मेवाड़ की सेना लेकर कर्नल वाल्टर व कर्नल हिथवोट ने किया लेकिन इनको असफलता ही मिली
- प्रीचार्ट के अनुसार :-नसीराबाद के क्रांतिकारी दिल्ली ना जाकर यदि अजमेर में आते और मैगज़ीन दुर्ग को लूट लेते तो इस क्रांति का स्वरूप कुछ ओर होता
- नसीराबाद :- 28 मई 1857
- नीमच :- 3 जून 1857
- एरिनपुरा :- 21 अगस्त 1857
- कोटा :- 15 oct 1857
अमरचंद बांठिया:- अमरचंद बांठिया बीकानेर निवासी थे
उपनाम :- 1857 की क्रांति में राजस्थान का प्रथम शहीद
- राजस्थान का मंगल पांडे
- 1857 की क्रांति के भामाशाह
- अमरचंद बांठिया नसीराबाद छावनी के पूर्व सैनिक थे तथा 1857 की क्रांति के दौरान यह ग्वालियर के प्रमुख क्रांतिकारी तथा व्यापारी थे
- अमरचंद बांठिया ने अपनी संपूर्ण संपत्ति तात्या टोपे तथा रानी लक्ष्मीबाई को दे दी थी इसीलिए अमरचंद बांठिया को गवालियर में एक पेड़ के नीचे फांसी दे दी
नीमच का विद्रोह:- 3 जून 1857
नेतृत्व :-हीरालाल
मोहम्मद अली बेग
- नीमच में अंग्रेज अधिकारी कर्नल एबॉट थे
- करण :-कर्नल एबोट ने नीमच के सैनिकों को ईमानदारी की कसम और शपथ दिलाई तथा क्रांतिकारियों ने यह कहते हुए विद्रोह कर दिया कि पहले इमानदारी की कसम दिलाकर अंग्रेजों ने अवध को हड़प लिया
- क्रांतिकारियों ने नीमच छावनी को खूब लूटा तथा यहां के 40 अधिकारी व उनके परिवार जन भाग निकले
- डूंगला गांव ( चित्तौड़गढ़):- नीमच से आइए 40 अंग्रेज अधिकारी तथा उनके परिवार जन को रुधाराम नामक किसान में डूंगला गांव में शरण दी
- मेजर शॉवर्स ने इन अंग्रेज अधिकारियों को यहां से उदयपुर ले गया
- महाराणा स्वरूप सिंह ने अंग्रेज अधिकारियों को पिछोला झील के जग मंदिर में शरण ली और गोकुल लाल लाल को इनकी देखरेख के लिए नियुक्त किया गया
- नीमच के क्रांतिकारी देवली टोंक और दिल्ली की ओर चलेगी
देवली छावनी का विद्रोह:- देवली छावनी के सैनिकों ने नीमच के क्रांतिकारियों के साथ मिलकर विद्रोह किया
एरिनपुरा छावनी का विद्रोह :-21 व 23 अगस्त 1857
- 1857 की क्रांति के आरंभ के समय राजस्थान के AGG जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस माउंट आबू में थे क्रांति की सूचना मिलने पर अजमेर चले गए तथा माउंट आबू की रक्षा का भार मारवाड़ के शासक महाराजा तख्त सिंह को पत्र लिखकर दिया
- महाराजा तख्त सिंह जोधपुर लिजियम के सैनिकों को मारवाड़ के सैनिकों को AGG की मुख्यालय की रक्षा के लिए माउंट आबू भेज दिया इन सैनिकों ने रक्षा करने की बजाय आबू में विद्रोह कर दिया के मुख्यालय को लूट लिया तथा AGG के पुत्र एलेक्स जेंडर हत्या कर दी
- 23 अगस्त 1857 को क्रांतिकारियों ने एरिनपुरा की छावनी को खूब लूटा तथा छावनी के सैनिक शिवनाथ सिंह एक नारा दिया चलो दिल्ली मारो फिरंगी एरिनपुरा की क्रांतिकारी दिल्ली की ओर रवाना हो गए
- आऊवा( पाली):-मारवाड़ राज्य का ठिकाना
- ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत एरिनपुरा से आए क्रांतिकारियों को ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत ने आऊवा में शरण दी तथा इनका नेतृत्व कर आऊवा में विद्रोह किया
- मारवाड़ में 1857 की क्रांति का सबसे बड़ा विद्रोह आऊवा में हुआ
बिथोङा का युद्ध( पाली ):-8 September 1857
- यह युद्ध मारवाड़ की सेना तथा क्रांतिकारियों के बीच हुआ
- मारवाड़ की सेना का नेतृत्व अनार सिंह हीथकोर्ट कर रहे थे
- क्रांतिकारियों का नेतृत्व ठाकुर कुशाल सिंह कर रहे थे इस युद्ध में अंग्रेज अधिकारी मारवाड़ की सेना की हार हुई
- अनार सिंह मारे गए
- क्रांतिकारियों की इस युद्ध में विजय हुई
चेलवास का युद्ध:-आऊवा का युद्ध /काला गोरा का युद्ध :-18 सितंबर 1857
- चेलवास (पाली) के मैदान में हुआ
- यह युद्ध अंग्रेजों की सेना तथा क्रांतिकारियों के मध्य हुआ
- अंग्रेजों की सेना का नेतृत्व में मैक मौसन जॉर्ज पैट्रिक लॉरेंस कर रहे थे
- क्रांतिकारियों का नेतृत्व ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत कर रहे थे
- क्रांतिकारियों ने मेक मौसन का सर काट कर आऊवा के किले पर लटका दिया
- song:- ढोल बाजे बांकीयो आऊवा के किले पर मैक मौसन को टाकियो
- मैक मौसन की कब्र:-आऊवा में
- इस कब्र को ऊंट की कब्र जाता है इस कब्र पर राईका /रेबारी जाति के लोग आकर मन्नत मांगते हैं
- आऊवा के विद्रोह का दमन करने के लिए राजस्थान के AGG जॉर्ज पैट्रिक लोरेंस की सलाह पर भारत के GG लॉर्ड कैनिंग पालनपुर और नसीराबाद की सेना को मिलाकर संयुक्त सेना का गठन किया
- 30 जनवरी 1858 को कर्नल होम्स ने आऊवा पर अधिकार कर लिया
- ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत भूमिगत हो गए
- कोठरियां (राजसमंद )के ठाकुर जोध सिंह तथा सलूंबर (उदयपुर) के ठाकुर केसर सिंह ने ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत को शरण दी
- कालांतर में ठाकुर कुशाल सिंह ने नीमच में अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया तथा मेजर टेलर आयोग द्वारा जांच की गई
- 1864 में उदयपुर में ठाकुर कुशाल सिंह चंपावत का निधन हो गया
सुगाली माता :-आऊवा पाली
- उपनाम:- मां काली /10 सिर व 54 हाथ वाली माता
- कुशाल सिंह चंपावत की कुलदेवी और 1857 की क्रांति में क्रांतिकारियों की आराध्य देवी
- 1857 की क्रांति में कर्नल होम्स ने माता का मंदिर ध्वस्त कर दिया तथा मूर्ति को अपने साथ ले गया
- कोटा का विद्रोह :-15 अक्टूबर 18 57
- राजस्थान में 1857 की क्रांति का सबसे बड़ा विद्रोह
- कोटा में कोई सैनिक छावनी नहीं थी यहां का विद्रोह जनविद्रो व जन द्वारा किया गया विद्रोह था
- राजकीय सेना ने भी क्रांतिकारियों का साथ दिया दिया
- कोटा का विद्रोह:- 15 अक्टूबर 1857
- नेतृत्व जय दयाल /हरदयाल व मेहराब खान कर रहे थे
- कोटा का शासक महाराव रामसिंह lI को कोटा दुर्ग में बंदी बना लिया
- कोटा के PA कर्नल बर्टन के पुत्र आर्थर व फ्रैंकलीन की क्रांतिकारियों ने हत्या कर दी
- नारायण व भवानी ने कर्नल बर्टन का सिर काटकर कोटा शहर में घुमाया बाद में कोटा दुर्ग पर लटका दिया
- इस विद्रोह को कोटा दुर्ग की क्रांति का जाता है
- करौली के शासक मदन पाल ने जनर्ल रॉबर्ट्स की की सहायता से दोनो ने मिलकर कोटा विद्रोह का दमन किया
- जयदयाल व मेहराब खां को फांसी दे दी
- महाराव रामसिंह lI को क्रांतिकारियों से मुक्त करवा दिया
- महाराव रामसिंह lI की तोपों की सलामी 17 से घटाकर 13 कर दी
- करौली के शासक मदनपाल को ग्रांड कमांड स्टार ऑफ इंडिया का खिताब देखकर 13 से 17 तोपों की सलामी करती
- जयपुर के शासक सवाई रामसिंह lI को अंग्रेजों ने सितारेे- ए -हिंद की उपाधि दी तथा कोटपुतली की जागीर दी
- बीकानेर के शासक महाराजा सरदार सिंह राजस्थान के शासक थे जिन्होंने 1857 की क्रांति में अपने राज्य से बाहर जाकर भी अंग्रेजों की सहायता की पोडलू(पंजाब) वाले हिसार (हरियाणा)मैं सहायता की
- कालांतर में प्रजा के दबाव में आकर क्रांतिकारियों को अपने राज्य में धन दिया और शरण दे
- अंग्रेजों ने महाराजा सरदार सिंह को टिब्बी की जागीर दी